
बिहार। चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस आज एक महत्वपूर्ण समीक्षा बैठक करने जा रही है। यह बैठक केवल चुनावी परिणामों की समीक्षा भर नहीं है, बल्कि पार्टी की भविष्य की दिशा तय करने वाला अहम पड़ाव मानी जा रही है। जिलाध्यक्षों, कार्यकारी अध्यक्षों, फ्रंटल संगठनों के प्रमुखों और विभिन्न स्तरों के नेताओं को इसमें शामिल होने के लिए बुलाया गया है।
हार के कारणों की गहन पड़ताल
कांग्रेस नेतृत्व का मानना है कि लोकसभा और विधानसभा उपचुनावों में लगातार हो रही हार ने संगठन को नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है। बैठक में जिलों से मिली रिपोर्टों और बूथ स्तर की कमज़ोरियों का विश्लेषण होगा। खास तौर पर यह देखा जाएगा कि किन कारणों से पार्टी मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाई और किन जगहों पर संगठनात्मक ढीलापन हार की वजह बना।
संगठन मजबूत करने की रणनीति बनेगी
बैठक में संगठन को पुनर्गठित करने, कैडर को सक्रिय करने और पुरानी गलतियों से सीखकर नए ढांचे को मजबूत करने पर विस्तृत चर्चा होगी। पार्टी नेतृत्व ऐसा तंत्र विकसित करना चाहता है जो बूथ से लेकर प्रदेश स्तर तक संगठन को फिर से धार दे सके।
14 दिसंबर की रैली भी एजेंडे में
दिल्ली में 14 दिसंबर को होने वाली “वोट चोरी के खिलाफ राष्ट्रीय रैली” की तैयारियों की समीक्षा भी बैठक का अहम हिस्सा होगी। प्रदेश नेतृत्व यह सुनिश्चित करना चाहता है कि बिहार कांग्रेस रैली में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराए और केंद्र की नीतियों के खिलाफ एकजुटता दिखाए।
राजद से अलग स्वतंत्र पहचान की तलाश?
बैठक का सबसे चर्चित विषय है—महागठबंधन से इतर कांग्रेस की स्वतंत्र राजनीतिक पहचान। सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस नेतृत्व नेताओं से सीधे यह फीडबैक लेने के मूड में है कि क्या गठबंधन ने जिलों में पार्टी के हितों को नुकसान पहुँचाया।
चुनाव में तालमेल की विफलता और कांग्रेस के वोट शेयर में गिरावट के बाद पार्टी अंदरखाने यह मंथन कर रही है कि क्या उसे भविष्य में अपना राजनीतिक रास्ता अलग बनाना चाहिए। कई नेता यह मानते हैं कि गठबंधन की वजह से कांग्रेस की पहचान कमजोर हुई और संगठनात्मक क्षमता प्रभावित हुई।
नई दिशा निर्धारित करने की प्रक्रिया
आज की बैठक बिहार कांग्रेस के लिए एक नई राजनीतिक दिशा तय करने वाली प्रक्रिया के रूप में देखी जा रही है। हार से सबक लेकर पार्टी एक मजबूत और स्वतंत्र संगठनात्मक पहचान स्थापित करने की तैयारी में दिख रही है। आने वाले समय में इसके असर बिहार की राजनीति और महागठबंधन की संरचना पर स्पष्ट रूप से देखने को मिल सकते हैं।










